गधों का मेला – कंगना और आर्यन भी आए बिकने के लिए
इसलिए प्रसिद्ध है उज्जैन का गधो का मेला, कई शहर से आए व्यापारी
उज्जैन में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के पूर्व कार्तिक मेला के समीप बड़नगर रोड पर गधों का मेला लगाया जाता है। यह मेला हर बार गधों के नामों को लेकर चर्चा में रहता है। ट्रेंडिंग सब्जेक्ट पर गधों के मालिकों द्वारा उन्हें नाम दिए जाते हैं। इस बार मेले में कंगना और आर्यन नाम के गधे भी बिकने के लिए आए। जिन्हें देखकर लोग आश्चर्यचकित रह गए।
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गधों का मेला का इतिहास काफी पुराना है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गधों का मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में गधे, घोड़े और खच्चर की खरीदी-बिक्री की जाती है। यही कारण है कि मेले में आसपास के शहरों से कई बेचवालों और खरीदार पहुंचते हैं। गधों का मेला जितना प्रदेश में अनोखा है उतना ही मेले में आने वाले गधों के नाम भी अनोखे होते हैं। गधों का व्यापार करने वाले लोग अधिकांश कंस्ट्रक्शन के काम में इनका उपयोग करते हैं। लेकिन आधुनिक मशीनों के उपयोग के कारण अब गधों का उपयोग बहुत कम किया जाता है।
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कम संख्या में आए गधो का मेला में व्यापारी
गौरतलब है कि बड़नगर रोड पर पिछले 15 दिनों से गधों के व्यापारियों ने डेरा डाल रखा है। हालांकि अधिकारिक रूप से 15 नवंबर से गधों का मेला शुरू किया गया था। गधों के सीमित उपयोग के कारण अब धीरे-धीरे गधों के व्यापारियों की संख्या में भी कमी आ रही है। इस बार गधों का मेला में उज्जैन के समीप आगर, शाजापुर, जीरापुर भोपाल, मक्सी सहित अन्य नगरों से व्यापारी अपने गधे और घोड़े को बेचने के लिए लाए हैं।
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गधो का मेला में इस तरह होती है नस्ल की पहचान
गौरतलब है कि गधों का मेला में व्यापारी गधों के साथ-साथ घोड़ा और खच्चर भी बेचने के लिए लाते हैं। जितना इनका रोचक नाम रखा जाता है उतना ही रोचक उनकी नस्ल को पहचानने का तरीका है। व्यापारियों के अनुसार गधों की उम्र और नस्ल की पहचान करने का तरीका उनके दांतो को देखकर लगाया जाता है। मेले में गधों की कीमत 3 हजार से शुरू है। व्यापारियों के अनुसार गधों की उम्र 4 से 5 साल की होती है।
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गधो का मेला में घोड़े की भी हो रही बिक्री
गौरतलब है कि गधों का मेला में कई व्यापारी अपने साथ घोड़े बेचने के लिए भी लाए हैं। मेले में कुछ घोड़े की कीमत 2 लाख से अधिक है। घोड़ा व्यापारियों का कहना है कि आज भी घोड़ों की उपयोगिता और प्रसिद्धि बनी हुई है। घोड़ों को आज भी कई लोग शौक के लिए पालते हैं। साथ ही घोड़े और घोड़ीओं का उपयोग शादी सहित अन्य कार्यक्रमों में शानो शौकत के लिए किया जाता किया जाता है।
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गधो का मेला में देशभर से आते थे व्यापारी
गधे का व्यापार करने वाले रामनारायण प्रजापत ने बताया कि पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते गधों का मेला नहीं लग पाया था। इस बार भी मेला नहीं लगने की शंका के चलते कई व्यापारी अपने गधे लेकर मेले में नहीं आए हैं। इसके अलावा गधों की उपयोगिता नहीं होने के कारण भी व्यापारी इस धंधे से बाहर हो गए हैं। एक समय ऐसा था जब उज्जैन के गधों का मेला में देशभर से व्यापारी गधे खरीदने और बेचने के लिए आते थे।
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