shri krishna janmashtami 2021-श्री कृष्ण इस उम्र में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आए थे उज्जैन
64 दिनों तक श्री कृष्ण ने महर्षि सांदिपनी से ली थी शिक्षा
उज्जैन। श्री कृष्ण जन्माष्टमी (shri krishna janmashtam) के पावन पर्व पर हम आपको भगवान श्री कृष्ण का उज्जैन (Ujjain) से खास कनेक्शन बताएंगे। ये तो सभी जानते हैं कि भगवान कृष्ण ने उज्जैन में महर्षि सांदिपनी (Maharishi Sandipani) से शिक्षा प्राप्त की थी। लेकिन ये कोई नहीं जानता कि भगवान जब उज्जैन आए तब उनकी उम्र क्या थी? वे यहां कितने दिन रहे और क्या-क्या सीखा।
ऐसे ही कई सवालों के साथ जब हम सांदिपनी आश्रम पहुंचे तो वहां हमे पं. रूपम व्यास मिले। हमने पंडीत जी से तमाम प्रश्न किए जो हमारे मन में चल रहे थे। इन सब सवालों के जवाब हमें दिए पं. रूपम व्यास ने दिए। पं. व्यास महर्षि सांदिपनी के ही वंशज हैं। वे सांदिपनी की 202 वीं पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। महर्षि सांदिपनी की व्यास पीठ जहां वे बैठा करते थे तब से अब तक उन्हीं के वंशज पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल रहे हैं।
पं. व्यास ने कहा सांदिपनी आश्रम में जहां भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा है, यह वही जगह है, जहां उन्होंने गुरु सांदिपनी से शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान जब यहां आए तब उनकी उम्र महज 11 वर्ष 7 दिन थी। पं. व्यास बताते हैं वह दिन कौन सा था, ये तो किसी को याद नहीं। लेकिन यहां आने के चार दिन पहले ही कृष्ण-बलराम का यज्ञोपवित संस्कार हुआ था। इतना ही नहीं यहां आने के पहले वे अपने मामा कंस का वध भी कर चुके थे। वे यहां 64 दिनों तक ही रहे। इन 64 दिनों में उन्होंने 64 विद्याएं सीखीं। इन 64 दिनों में उन्होंने 16 दिन में 16 कलाएं, 4 दिन में 4 वेद, 6 दिन में 6 शास्त्र, 18 दिन में 18 पुराण, 20 दिन में गीता का ज्ञान प्राप्त किया था।
काशी से आए थे महर्षि सांदिपनी
महर्षि सांदिपनी जी सभी विद्याओं को जानने वाले थे। काशी में पुत्रों की मृत्यु के बाद वे उज्जैन आकर बस गए थे। वे यहां आए तब अकाल पड़ा हुआ था। तब उन्होंने शिव की आराधना की और अकाल दूर करने की प्रार्थना भी की। तब भगवान शिव ने अकाल दूर करने के साथ यह भी कहा कि महर्षि सांदिपनी तुम यहां शिक्षा देने के लिए आश्रम खोलो। द्वापर युग में तुम्हारे पास दो छात्र आएंगे जो तुम्हें तुम्हारा मृत पुत्र जीवित अवस्था में भेंट देकर जाएंगे।
पुत्र को किया था जीवित
भगवान कृष्ण ने पुनर्जीवित करने की संजीवनी विद्या भी महर्षि सांदिपनी से ही सीखी थी। 64 दिन की शिक्षा पूरी हो जाने के बाद गुरु दक्षिण के रूप में भगवान ने सांदिपनी के सबसे छोटे बेटे दत्त का पार्थिव शरीर यमराज से लाकर संजीवनी विद्या से उसे जीवित किया था। श्री कृष्ण ने उसका नाम पुनर्दत्त रखा और उसकी मां सुश्रुषा को सौंप दिया।
उज्जैन में ही है बैठी प्रतिमा
भगवान श्री कृष्ण चूंकि उज्जैन में शिक्षा प्राप्त करने आए थे, इसलिए उनकी बैठी हुई प्रतिमा ही बनाई गई है। इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में केवल उज्जैन में ही है। बाकी जगहों पर या तो लड्?डू गोपाल स्वरूप है या बंशी बजाते हुए खड़ी प्रतिमा है। मंदिर परिसर में ही गोमती कुंड भी बना हुआ है, जहां भगवान पानी से अपनी स्लेट साफ किया करते थे। यहां उनके पैरों के निशान बने हुए हैं। उनके गुरु महर्षि सांदिपनी की व्यास गादी आज भी वहीं है। पढतें रहे thetadkanews.com देखें खबरे हमारे यूट्यूब चेलन the tadka news पर, जानिए देश-विदेश और अपने प्रदेश, बॉलीवुड की खबरें, जुडिएं हमारे फेसबकु tadka news पेज से…
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